Monday 9 September 2019

Shabe Ashur in Kanpur


कानपुर में शबे आशूर यानि क़त्ल की रात.मुहर्रम की नौ तारीख आशिकाने हुसैन ने जाग के गुज़ारी.सभी इमाम्बर्गाहों पे ताज़िये रखे गए जिन्हे कल यौम इ आशूर के दिन विभिन्न कर्बलाओं में सुपुर्दे खाक किया जायेगा.मातमी अंजुमनों ने आलम और ताबूत जुलुस निकाले.इमाम चौको पे ताज़िए रखकर फातिहाख्वानी,शहादतनामे और सेहरे चढ़ाकर हुसैन प्रेमियों ने नज़राने अक़ीदत पेश की और अपनी हाजत पूरी करने की दुआ शोहदाए कर्बला से मांगी.इमाम हुसैन के छे महीने बच्चे हज़रात अली असग़र की शहादत का ज़िक्र आज आयोजित मजलिस में खुसीसी तौर से हुआ.इमाम का ये बच्चा भी तीन दिन से भूका और प्यासा था .निढाल होकर जब बच्चे ने अपने को झूले से गिरा दिया तो इमाम उसे लेकर मैदान में आये .उन्होंने यज़ीदी फ़ौज से कहा कि तुम अगर पानी नहीं देना चाहते तो कम से कम इस नन्हे बच्चे को तो पानी दे दो.ज़ालिमों ने इमाम कि बात का जवाब ज़ालिम कमांडर हुरमुला ने तीन फाल के तीर से दिया जिससे बच्चा इमाम के हाथों पे ही शहीद हो गया .अज़ाख़ाना अंजुम साहिब में आयोजित मजलिस में ज़ाकिर अहलेबैत मोहतरमा डॉ.हिना ज़हीर ने कहा कि विश्व में कर्बला कि जंग के शिव दूसरा कोई उदहारण नहीं मिलता जिसमे किसी छे महीने के बच्चे को शहीद किया गया हो.उन्होंने एक शेर के ज़रिये ज़ुल्म कि दास्ताँ बयां की "ज़ुल्म सा ज़ुल्म है असग़र को न देना पानी
छे महीने का बच्चा था,कितना पी लेता पानी ".नवाब साहिब का हाता ,कुरसवाँ,ग्वालटोली,सकेरा एस्टेट,जाजमऊ,कर्नलगंज,बाबूपुरवा,जूही,सय्यद नगर,रावतपुर  और पटकापुर  में मजालिस का एहतेमाम हुआ.ज़िक्र शहादते हुसैन का शर्फ़ मौलाना मुनव्वर हुसैन,मौलाना शहाब,मौलाना ज़हीर अब्बास आदि कोप्राप्त हुआ.सभी ने शबे आशूर कि रूहानी अहमियत और इमाम हुसैन के उद्देश्यों पे प्रकाश डाला .कई जगह पैकियों का स्वागत और सबील का इंतिज़ाम किया गया.लंगर ऐ हुसैनी तक़सीम हुआ.इमाम चौकों पे बिजली कि सजावट की गयी.रात भर इमाम्बर्गाहें खुली रही और दर्शनार्थियों का ताँता लगा रहा.शिया समुदाय के लोग बिस्तर पे नहीं लेटे और इबादत या ज़ियारत में मसरूफ रहे.     लाखों की तादाद में क़ासिद ऐ  हुसैन नवाबगंज कर्बला पहुंचे.वहां इस नियामत लेकर जुलुस की शक्ल में लौटे.मुख्तलिफ इमाम्बर्गाहों और चौकों पे हाज़िरी का सवाब हासिल किया.पुरे रास्ते नारे हैदरी की सदा बुलंद की.परेड,बेकनगंज,नई सड़क , कुली बाजार, सुतरखाना,पटकापुर,बांसमंडी,चमनगंज,अनवरगंज और जाजमऊ के इलाक़े ज़ायरीन और पैकियों की आमद रफ़्त की वजह से गुलज़ार रहे.
कानपुर में मुहर्रम और अज़ादारी की रस्मों को फ़रोग़ नवाब आग़ा मीर की १८३० में आमद के बाद मिला.आग़ा मीर बादशाह ग़ाज़ीउद्दीन हैदर के प्रधानमंत्री थे.नासिर उद्दीन हैदर के ज़माने  में उन्हें लखनऊ छोड़ना पड़ा था क्यूंकि उनके   राजनितिक शत्रु नसीरुद्दीन को बहकाने में सफल हो गए थे.आग़ा मीर ने नवाबगंज और ग्वालटोली में मुहर्रम के जुलुस निकालने की प्रथा डाली.मुहर्रम मनाने वालों की  आर्थिक मदद भी की .उनके दामाद नवाब मुज़फ्फर हुसैन ने पटकापुर में भी इसी तरह के इन्तेज़ामात किये.कानपुर की पहली अंजुमन १८५७  में पटकापुर के लोगों ने मोइनुल मोमनीन के नाम से शुरू की जो आज भी पूरी मुस्तैदी से अपने फ़राइज़ अंजाम दे रही है.   

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